बात भी कुछ समय पहले की है, शायद लगभग नब्बे के दशक की बात होगी, कुछ लोग घर में एक साथ बैठे थे , और बातों बातों में ऐसे ही बात चल गयी की आज तो हर चीज बाजार में नयी नयी आ गयी है
पता ही नहीं चलता की वो सब पुरानी चीजे खा जायँगी, आज का दौर तो बस ऐसा लगता है की बदलता ही जा रहा है, देखो आज के जमाने में कपडे के साइज ही छोटे होते जा रहे है और हमे तो यार बस शर्म ही आवे है, कल हमे प्रधान जी मिले थे और कहने लगे की अपने बच्चो को गाव के स्कूल में ही पढ़ाओगे या फिर शहर में भेजोगे, हम ने तो बस इतना ही कहा की प्रधान जी अगर शहर में भेज दिया तो देखो आज का जमाना तो बड़ा ही खराब है और फिर अपने सामने पढ़ेंगे तो अच्छा है सब कुछ यह पर दिखता रहेगा.
अरे यार तुम्हे पता है की शामू का लड़का कल शहर से पढ़कर आया है क्या फर फर अंग्रेजी बोलता है हमे तो समझ में भी न आवे, अंग्रेजी की छोड़ उसके कपडे भी देखे कैसे पहन कर रखे है, रंग बिरंगे , काहे के रंगीन हमे तो जोकर ही नज़र आवे है, रामसिंह तुम बताओ की क्या सोचा है अपने लड़के के बारे में और कितना पढ़ाओगे या फिर खेती ही करवाना है, अरे भाई खेती तो में कर ही रहा हु कुछ पढ़ लेगा तो कुछ बन भी जाएगा, नहीं तो यही ऐसी खेती में रह जाएगा, तो भाई गाव में तो ज्यादा न पढ़े है, उसे तो शहर ही भेजना पड़ेगा तभी कुछ बन पायेगा,
शहर का नाम लेते ही बस यार बिगड़ने का ख्याल मन में आ जाता है, अरे भाई सब एक जैसा थोड़े ही होता है, ऐसा कर तुम उसे शहर ही भेज दो यहाँ रहकर भी कहा पढ़ पायेगा, चलो देखता हु, भेज ही दूंगा.और अब तो शाम भी हो गयी है अब ये लड़का पता नहीं कहा चला गया अभी थोड़ी देर पहले तो यही था. अरे सुनती हो मोहन को देखा है कहा गया है ये लड़का अब कहा पर तलाश करे, देखो मुन्नी कही पास वाले घर में तो नहीं गया वो वही बैठ जाता है अपने दोस्तों के साथ, हां देखती हू.
उधर मोहन और उसके दोस्त एक गुलाब की झाड़ी के बारे में बात कर रहे थे की यहाँ से कुछ दूर एक ऐसी झाड़ी है जहा पर एक चुड़ैल का साया है, और वो चुड़ैल सब को कहा जाती है इसलिए वह पर शाम को कोई नहीं जाता है, मोहन ने कहा की ऐसा कुछ नहीं है अगर ऐसा होता तो गाव में सभी को पता होता पर कोई भी इस बारे में बात नहीं करता है, तभी वह पर मुन्नी आ गयी और बोली की पिताजी बुला रहे है चलो घर पर. ठीक है यार कल हम उस झाड़ी की जगह जाएंगे और देखेंगे क्या है वह पर ठीक है अब में घर जाता हू कल मिलते है उसी जगह पर,
रात होने पर मोहन ने अपने पिताजी से पूछा की, कुछ दुरी पर जो झाड़ी है वह पर कोई चुड़ैल रहती है, पिताजी ने कहा की अब सो जा वह कुछ नहीं और ज्यादा घूमने फिरने की भी कोई जरुरत नहीं है, सारा समय इधर उधर घूमने में ही निकाल देता है कुछ पढाई पर भी ध्यान दे दिया कर या यहाँ पढ़ने का मन नहीं है तो अभी बता दे, फिर शहर में ही तेरा दाखिला करा देता हू फिर वही पर ही पढ़ना.
अपने पिताजी की बाते सुनते सुनते मोहन को नींद आ गयी और फिर सुबह हो गयी जैसा की तय था की आज हम उस फूलो की झाड़ी में जरूर जाएंगे और लगभग शाम होते ही सभी दोस्त ने मिलकर जाने का प्लान तैयार कर लिया और इस जगह की दुरी लगभग दो किलोमीटर थी इसलिए गाव वाले में से कोई भी वहाँ नहीं जाता था, रस्ते में मोहन के दादा जी मिले और उन्होंने पूछा की कहा जा रहे हो पर मोहन ने कहा की बस ऐसे ही घूमने जा रहे है पर ये बात छुपा ली की हम उस झाड़ी में जा रहे है, और रस्ते बाते करते करते है
सभी दोस्त वहाँ पर पहुच गए जहा पर वो झाड़ी थी, अब समय इतना हो गया था की झाड़ी में दूर से देखने पर रोशनी कम ही नज़र आ रही थी अब मोहन ने कहा की सब साथ में चलते है, पर कुछ दोस्तों ने कहा की हमे तो दर लग रहा है असा करो की तुम ही चले जाओ, मोहन ने कहा की वहाँ कोई नहीं है हम सब एक साथ इस रस्ते से अंदर जाएंगे और फिर सीधे दूसरी तरफ निकल जाएंगे. बस फिर अपने घर चले जायँगे,
अब सभी बच्चे यही सोच रहे रहे थे की हम एक साथ जाए या फिर मोहन ही अंदर जाए Because वही कहता है की उसे दर नहीं लगता है, अब मोहन ने कहा की हां अब चलो क्या सोच रहे हो, एक दोस्त बोला ऐसा करते है यार अब घर चलते है रात भी हो रही है और फिर घर पर डाट पड़ने का भी दर है, और झाड़ी तो तुमने देख ही ली है, और अंदर जाने पर भी होगा क्या, घर चलते है है, मोहन ने कहा की अब यहाँ पर आ ही गए है तो पहले देख ही ले अंदर क्या है एक बार देख लेंगे तो यहाँ फिर आने की कोई जरूरत नहीं है, और तुम्हे भी पता चल जाएगा की कोई भूत नहीं होता है.
उनमे से एक दोस्त ने कहा की अगर कोई भूत हुआ तो वो हमे पकड़ लेगा और खा जाएगा, उसकी बात सुनकर सभी लोग घबराने लगे और डर उनके अंदर समै रहा था, मोहन ने कहा की ऐसा कुछ नहीं है तुम तो यही डर रहे हो वहाँ कुछ नहीं नहीं है और हम एक साथ होंगे तो भूत कर भी क्या सकता है हम इतने सारे है की वो ही डर के भाग जायेगा. पर कुछ दोस्त मान ही नहीं रहे थे उन्हें तो बस डर ही लग रहा था.
तभी उनोहने झाड़ी में से कुछ आवाज सुनाई दे ऐसा लग रहा था की उस झाड़ी में कुछ है, आवाज कुछ सर सर की आ रही थी पर कुछ समझ में नहीं आ रहा था की आवाज किस चीज की है, हम सभी दोस्त थोड़ा चुप गए ये देखने के लिए आखिर आवाज किस चीज की है और साथ ही डर भी लग रहा था, कुछ देर ऐसे ही छुपे रहे और आवाज भी लगातार बढ़ती ही जा रही थी असा लग रहा था की कोई बाहर आ रहा है.
कुछ देर इंतज़ार करने पर भी वहाँ कोई भी बहार नहीं आया है और सभी को लगा की कोई भी वहाँ नहीं हम लोग यूही डर रहे है, शाम के लगभग सात बजे का टाइम हो रहा था और कोई भी ये तय नहीं कर प् रहा था की सब अंदर जाए या सिर्फ मोहन ही अंदर जाए. थोड़ी दूरी पर एक छोटा सा पप्पी दिखाई दिया और हमारी दूरी और उसकी दूरी में काफी फर्क था, वो कुछ दूरी पर एक लकड़ी के साथ के खेल रहा रहा था.
लकड़ी के साथ खेलते खेलते वो पप्पी उस झाड़ी के अंदर चला गया और बहुत देर होने पर भी वहाँ से बाहर ही नहीं आया. हम इंतज़ार कर रहे थे की अचानक फिर वही आवाज सर सर की शुरू हो गयी, हमे बिलकुल भी समझ नहीं आ रहा था की ये आवाजे है किसकी और कोन ऐसी आवाजे निकाल रहा है, उन आवाजो के साथ साथ पप्पी की भी आवाज आ रही थी जैसे कोई उसे पीट रहा हो, पप्पी जोर जोर से चिल्ला रहा था और सर सर की आवाज भी तेज हो रही थी,
अब बस मोहन ने कहा की तुम्हे जाना हो तो जाओ पर अब में तो अंदर जा रहा हू पता नहीं कोन उस पप्पी को पीट रहा है, और मोहन ये कह कर अंदर चला गया पर उसके साथ कोई भी दोस्त अंदर नहीं गया, मोहन ने देखा की अंदर तो गुलाब ही गुलाब खिल रहे है और झाड़ी जितनी बाहर से उलझी हुई दिखती है उतनी अंदर से है ही नहीं, देखने पर तो अंदर आराम से चला जा सकता है, पर बहुत देखने पर पप्पी नज़र नहीं आ रहा था,
उस झाड़ी के बीच में एक टीला बना हुआ था और उस टीले में एक रास्ता अंदर की और जाता था, उस टेली में झाँकने पर एक अजीब सी घंध आ रही थी और अजीब से आवाज भी, पता नहीं कोई अंदर है या नहीं, पर इतने घने जंगल में कोन रह सकता है, तभी कुछ आवाजे आस पास से आयी में एक छोटी सी झाड़ी के पीछे चुप गया और देखने लगा की कोई सामने आ रहा है, और अगर गोर से देखा जाए तो उसका चेहरा ढका हुआ था , और उसके कपडे एक दम काले थे,
देखने पर तो उससे बहुत ज्यादा डर लग रहा था शायद वो बात दोस्तों की सही थी की यहाँ कोई रहता है कही ये वही चुड़ैल तो नहीं है. ये सोच कर तो और भी डर लग रहा था, अब किया भी क्या जा सकता था अब तो अंदर भी आ गया था, उसकी में चुप कर देख रहा था पर वो पूरी ताक़त से कुछ सूंघ रही थी, न जाने क्या सूंघते सूंघते उसने मेरी झाड़ी की और देखा और में डर गया की ये क्या चीज है.
अब वो धीरे धीरे मेरी झाड़ी की और बढ़ने लगी और डर का आलम ये था की बस यहाँ से भाग लिया जाए और जैसे ही वो मेरे नज़दीक आयी तो कही से पप्पी की आवाज उस चुड़ैल को आ गयी और वो वापिस उस पप्पी की तरफ भागी और उसे पकड़कर उसने अपने टीले के अंदर फेख दिया और उसे ऐसा करते देख में वहाँ से भागा, मेरे भागते ही उस चुड़ैल ने मुझे देखा
वो भी मेरे पीछे पड़ गयी और में झाड़ियो में पूरी रफ़्तार से दौड़ रहा था मनो कभी पहले ऐसा मेने कभी नहीं किया था. चुड़ैल दौड़ कम रही थी और उड़ ज्यादा रही थी डर के मारे अब पसीना पूरी रफ्तार से निकाल रहा था और में अपने दोस्तों से काफी दूर था और उन्हें कुछ भी नहीं कह सकता था, मेरा वो इंतज़ार कर रहे होंगे और में यहाँ पर फस गया हू पता नहीं अब घर जा भी पाउँगा या नहीं,
उधर सभी दोस्तों को लगा की बहुत देर हो चुकी है और मोहन भी बहार नहीं आया तो मेरे दो दोस्तों ने सोचा की ये खबर मोहन के घर दे आये की मोहन यहाँ फस गया है और बाबह्र भी नहीं आया तो वे दोनों दोस्त घर पर चले गए और कुछ दोस्त वही मेरा इंतज़ार करने लग गए. दोस्त जब घर जा रहे थे तो रस्ते में मोहन के दादा जी मिले और दोस्तों ने सारा किस्सा सुना दिया अब दादा जी को ध्यान आया की उनके पिताजी उन्हें उस झाड़ी के बारे में बत्ताते तो थे और आज मोहन वहाँ चला गया और उसने बताया भी नहीं और दादा जी उनकी बात सुनकर उनके साथ चल दिए.
मोहन उस चुड़ैल से पीछा छुड़ा ही नहीं पा रहा था और चुड़ैल कह रह थी बहुत दिनों बाद आज मानव का शिकार होगा और तू बच कर यहाँ से जा नहीं सकता तू कितना भी छुप ले, आज तू मेरा शिकार है, कोई तुझे आज बचा नहीं सकता. में कह रह था की मेरा पीछा छोड़ दे में यहाँ कभी नहीं आयूंगा. और जो तुझे चाहिए वो में लेकर दे दूंगा बस तुम मुझे छोड़ दो.
जैसे ही वो मेरे पास आयी तो उसने अपने हाथो से मुझे पकड़ लिया उसकी पकड़ में ऐसा एहसास हो रहा था की उसके अंदर मांस है ही नहीं सिर्फ हड्डिया ही महसूस हो रही थी, और उसने अपने कपडे उतार फेके तो बस हड्डिया ही नज़र आ रही थी वो एकदम कंकाल ही थी डर के मारे में बेहोश हो गया, जब होश आया तो में घर पर था,
जब मेने पूछा की वहाँ क्या हुआ तो दादा जी ने बताया की जैसे ही तुम बेहोश हुए तो में अंदर आ गया और उस कंकाल ने मुझे देखा तो मेने हनुमान चालीसा का जाप शुरू कर दिया और वो कंकाल वहाँ से गयाब हो गया और हमने तुझे उठाया और घर ले आये. तुम्हारे गलत फैसले से शायद हम तुम्हे खो ही देते है. तुम्हे ऐसा नहीं करना चाहिए था, इस बात को सुनकर मोहन ने सब से माफ़ी मांगी और अपने ज़िन्दगी में कभी ऐसा न करने फैसला लिया.
दोस्तों अगर आप भी किसी प्रकार से गलत फैसला लेते है तो हमे बहुत सी हानी उठानी पड़ सकती है, इसलिए ऐसा कोई भी काम आप न करे जिससे हमारे परिवार को मुसीबत का सामना करना पड़े, और बिना जानकारी के आप कही भी ऐसी जगह पर न जाए जिससे आपको हानी हो, Because हम बिना सोचे ही कही पर भी चले जाते है जबकि हम उस जगह से अनजान होते है
जब हमारे सामने मुसीबत आती है तो हम सब कुछ भूल जाते है क्योकि हमे कुछ भी समझ नहीं आता है इसलिए सही समझ के साथ ही आगे बढ़ना चाहिए तभी हम मुसीबत से बच सकते है तो आप समझ गए होंगे की ऐसा करने से क्या नतीजे हो सकते है. करे…………